गोरखमालिया में बैठे जसनाथजी |
लालमदेसर निवासी ब्राह्मण जाति के जियोजी को जसनाथजी द्वारा तत्वज्ञान सम्बन्धी उपदेश देने की कथा भी सिद्ध साहित्य में वर्णित है । सिद्धों में यह बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मौखिक रूप से कही जाती है।
एक बार जियोजी ब्राह्मण लालमदेसर से एक विवाह सम्बन्ध लेकर कालू गांव जा रहे थे । मार्ग में कतरियासर में वे जल पीने गोरखमालिये गए । वहां उनकी जसनाथजी से भेंट हुई और 'आदेश' कहकर इनका अभिवादन किया । प्रत्युत्तर में जसनाथजी ने दो बार 'आदेश-आदेश' कहा जबकि साधारणतः शिष्य गुरु को अभिवादन स्वरूप एक ही बार 'आदेश' कहता है । प्रत्युत्तर में दो बार 'आदेश' कहने का कारण समझाते हुए जसनाथजी ने कहा :-
आत्म दृष्टि से सभी ब्रह्म हैं । ब्रह्म भाव से गुरु और शिष्य में कोई भेद नहीं । शिष्य ब्रह्म रूप से ही गुरु को 'आदेश' कह कर उसके ब्रह्मत्व को स्वीकार करता है, इसी प्रकार शिष्य भी ब्रह्मस्वरूप है, तो फिर गुरु भी शिष्य को ब्रह्म मानने में क्यों हिचकिचाये ? यही 'आदेश' का अर्थ है ।
जियोजी जसनाथजी के उक्त कथन से बड़े प्रभावित हुए । और वार्तालाप के बीच यह भी बताया कि वे एक विवाह का लग्न लेकर कालू ग्राम जा रहे हैं । जसनाथजी ने उन्हें चेतावनी दी कि इस विवाह लग्न में कुछ गड़बड़ी है ।
कालू ग्राम से लौटते हुए उनसे पुनः मिलने की आज्ञा दी । वे विवाह लग्न लेकर कालू ग्राम की और बढ़े । लेकिन मार्ग में ही उन्हें कालू ग्राम के एक व्यक्ति से सूचना मिली की रूपाराम चौधरी के लड़के का - जिसका विवाह होने वाला था - देहान्त हो गया है । संयोग से इसी लड़के के विवाह के लग्न को लेकर वे जा रहे थे । जियोजी इस समाचार से विक्षुब्ध हो पुनः जसनाथजी के निकट आये । तब जसनाथजी ने जियोजी के शोक संतप्त मन को जीवन की नश्वरता, और कर्म के महत्व का ज्ञान दिया । जसनाथजी द्वारा जियोजी को कहा गया मूल शब्द आप 'धरती इंद सिरे जोड़ावो' सबद में पढ़ सकते हैं । उसका भावानुवाद इस प्रकार है ।
यह काया कांच के सामान कच्ची है, यह पंचतत्व निर्मित शरीर अन्त में पंच तत्वों में ही मिल जायगा । करनी का फल हर मनुष्य को भोगना पड़ता है । अपने दुखों का कारण भगवान को देते हुए उसको दोष देना व्यर्थ बताया । कर्महीन व्यक्ति को हमेशा ही पछताना पड़ता है । अतः निरंजन निराकार ब्रह्म का ध्यान कर - उनकी सेवा कर । उस पूर्ण गुरु की सेवा करने से ही व्यक्ति के पापों का क्षय होगा । इस सृष्टि में इन्द्र और धरती का जोड़ा ही सर्वश्रेष्ठ है । जो परस्पर स्नेह के सम्बन्ध द्वारा निस्वार्थ भाव से जन समूह का कल्याण करता है । जसनाथजी द्वारा तत्वज्ञान प्राप्त कर जियोजी को बड़ी आत्मशान्ति मिली ।
नोट - उक्त शिक्षा 'धरती इंद सिरे जोड़ावो' सबद का भावानुवाद है ।
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