जीने की राह दिखाती गोरख वाणी

गोरखवाणी में कई बड़ी-बड़ी बातें कही गई हैं। जिन्‍हें अगर आपने जीवन में उतार लिया। तो जीवन काफी सरल हो जाएगा।
बसती न सुन्यम, सुन्यम न बसती अगम अगोचर ऐसा !
गगन सिषर महिं बालक बोलै ताका नाँव धरहुगे कैसा !!
इसको सरल शब्‍दों में कहें तो, 'परमतत्व तक किसी की पहुँच नहीं है वह अगम है। वह इन्द्रियों का विषय नहीं, वह तो अगोचर है। वह भाव और अभाव, सत और असत दोनों से परे है। वह तो आकाश मंडल में बोलने वाला बालक है, क्योंकि आकाशमंडल को शून्य, आकाश या ब्रह्मरंध्र कहा गया है और यही ब्रह्मा का निवास है। इसे बालक इसलिए भी कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार बालक पाप और पुण्य से अलग रहता है ठीक उसकी प्रकार परमात्मा भी इस सब बंधनों से मुक्‍त है।'
अदेषी देषिबा देषि बिचारिबा अदि सिटि राषिबा चीया !
पाताल की गंगा ब्रह्मंड चढ़ाइबा, तहां बिमल बिमल जल पीया !!
न देखे जा सकने वाले परब्रम्ह को देखना चाहिए और देखकर उस पर विचार करना चाहिए। जो आँखों से देखा नहीं जा सकता उसे चित्त में रखना चाहिए। पाताल जो मूलाधार चक्र हैं वहाँ की गंगा अर्थात कुण्डलिनी शक्ति को ब्रम्हाण्डमें प्रेरित करना चाहि , वहीँ पहुँच कर योगी साक्षात्कार करता है अर्थात अमृत पान करता है।
इहाँ ही आछै इहाँ ही आलोप, इहाँ ही रचिलै  तीनि  त्रिलोक !
आछै संगै रहै जू वा, ता कारणी अनन्त सिधा जोगेस्वर हूवा!!
ब्रह्मा हर जगह है, यही वह अलोप है, जहां तीनो लोकों की रचना हुई। पूरा ब्रम्हाण्ड ब्रह्म का ही व्यक्त स्वरुप है, ब्रम्हरंध्र से ही उसने अपना सर्वाधिक प्रसार किया है। ऐसा अक्षय परब्रहम जो सर्वदा हमारे साथ रहता है, उसी के कारण उसी को प्राप्त करने के लिए अनंत सिद्ध योग मार्ग में प्रवेश कर योगेश्वर हो जाते हैं।
वेद कतेब न षानी बाणी, सब ढंकी तलि आणी !
गगनि सिषर महि सबद प्रकास्या, तहं बूझै अलष बिनाणी!!

वेद आदि भी परब्रम्ह का ठीक से निर्वचन नहीं कर पाए हैं, न किताबी धर्मो की पुस्तकें और न ही चार खानि की वाणी। बल्कि इन्होने तो सत्य को प्रकट करने के बदले उसके ऊपर आवरण डाल दिया। यदि ब्रम्ह स्वरुप का यथार्थ ज्ञान अभीष्ट हो तो ब्रम्ह्रंध्र यानी गगन शिखर में समाधि द्वारा जो शब्द प्रकाश में आता है, उसमे विज्ञान रूप अलक्ष्य का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।

साभार - अभिषेक तिवारी, दैनिक जागरण

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