जसनाथजी द्वारा बकर कसाई को अहिंसा का उपदेश


उन दिनों में दिल्ली प्रदेश में मुसलमान तस्करों का बड़ा प्राबल्य था । वे सिन्ध और पंजाब से होकर थली प्रदेश में आते तथा गाय बछड़ों - धन धान्य को लूट कर ले जाते थे । एक बार मुसलमान व्यापारियों ने हिसार की वधशाला के लिए कतरियासर के आस पास के प्रदेश से बड़ी संख्या में भेड़, बकरी व गायों को खरीदा । जब जसनाथजी को यह मालूम हुआ तो उन्होंने अपने योग बल द्वारा उन पशुओं को अपने पीछे टोर लिया । बकर कसाई की - जो उन व्यापारियों का प्रधान था - उन पशुओं को अपने साथ घेर कर ले जाने की लाख चेष्टा करने पर भी पशु उसके साथ नहीं गये । तब उन्होंने अपने धर्म और मुहम्मद साहब की दुहाई देते हुए कहा कि 'कुरान और हजरत मुहम्मद की आज्ञा से इन पशुओं को हलाल करने में कोई हर्ज़ नहीं है । उस समय मद से मतवाले धर्मान्ध कसाइयों को उपदेश दिया कि 'जिस प्रकार जब देश के दुर्ग उजड़ जाते हैं, देश का शासक या प्रदेश का ठाकुर दुर्बुद्धि का मारा लोभ के वशीभूत हो प्रजा को लूटने लगता है तो उसका विनाश अवश्यंभावी है, उसी प्रकार जो व्यक्ति लालच के वशीभूत हो बैलों से, ऊंटों से अधिक कार्य लेते हैं तथा जो दूसरों की कृषि देख कर जलता है उस व्यक्ति का विनाश भी अवश्यंभावी है । अवसर पर चूकने वाले व्यक्ति को पछताना पड़ता है । गाय का वध किसलिए करते हो वह तो गोरखनाथजी को मां की भांति प्यारी है । गाय निरीह प्राणी है । दिन भर जंगल में चरती है - शाम को तुम्हें दूध देती है । चांद सूरज इसके रखवारे हैं । ऐसे प्राणी का वध करने वालों को भगवान कभी क्षमा नहीं करता ।
उसके बाद भी वे कसाई लोग बार बार मुहम्मद की दुहाई देते हुए मवेशियों को वध के लिये - ले जाने की चेष्टा करते रहे । तब जसनाथजी ने उन्हें मुहम्मद के सच्चे स्वरूप का ज्ञान कराते हुए आराधना पर बल दिया तथा जीव की नश्वरता का बोध कराया । उनमें से एक व्यक्ति ने कहा कि 'इस प्रकार तो आप दांतुन तोड़ते हैं - उसका भी हिसाब आपको देना पड़ेगा ।' इस पर जसनाथ जी ने कहा -- 'दांतुण को सांई लेखो मांगै, गळ काट्यां किम छोड़ेगो ।'
जसनाथजी की इन पंक्तियों व चमत्कारों से बकर कसाई, मुल्ला एवम् काजी अत्यन्त प्रभावित हुए । उन्होंने भी, कहते हैं - अहिंसा व्रत का धारण कर लिया । यही नहीं दिल्ली के शाह से भी इन लोगों ने जसनाथजी के चमत्कार व सिद्धियों की चर्चा की तो शाह ने प्रभावित हो जसनाथजी को काफी बड़ी ज़मीन भेंट में दी । (उक्त दावे का स्रोत - मुंशी सोहनलाल कृत तवारीख़ राज्य श्री बीकानेर, पृष्ठ 46)

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