ॐ नमो आदेश |
माता-पिता एवं पूर्वज -- जसनाथ जी के पोषक पिता का नाम हमीर जी था . हमीर जी जाणी जाट थे . हमीर जी बीकानेर के निकट भागथली प्रदेश में स्थित कतरियासर ग्राम के अधिपति थे . हमीर जी की पत्नी का नाम रूपादे था . ये 'सोमवाल' शाखा के जाट की लडकी थीं . अपने पिता बीसल जी के देहान्त के पश्चात हमीर जी कतरियासर के शासक घोषित हुए . आप अत्यन्त विवेकशील - दयालु, तथा योग्य शासक थे . हमीर जी तथा उनकी पत्नी रूपादे के विषय में योगी श्री कृष्णनाथ तितिक्षु ने लिखा है कि " -- वे दान करने में राजा कर्ण के समान थे और प्रजापालन में विष्णुजी के समान कहें तो भी अत्युक्ति असंभव है . इनकी अर्द्धांगिनी श्रीमती रूपादे पातिव्रत्य धारिणी सती सीता के सदृश सौभाग्यवती और सुशीला महिला थीं . किन्तु दैवयोग से यह दम्पत्ति निःसंतान थे . प्रौढ़ावस्था व्यतीत हो जाने पर भी हमीर के कोई सन्तान नहीं हुई . परिणाम स्वरूप पति पत्नी दोनों को समाज में बहुत व्यंग्य सुनने पड़ते थे तथा अपमानित भी होना पड़ता था .
एक बार हमीर के घर कुछ संत आए . भक्ति और श्रद्धा से प्रेरित रूपादे उनके लिए स्वयं कुंए पर जल लाने घड़ा लेकर गई . संतों के प्रति उनकी श्रद्धा को देख के कुंए पर उपस्थित महिलाओं ने व्यंग्य करते हुए कहा -- संतों की सेवा करते बाल सफेद हो गए हैं - अब तो 'लाल' खेलने की आशा अगले जन्म में ही पूरी होगी .
इस प्रकार हमीर जी को भी कई बार अपमानित होना पड़ा था . एक बार प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत्त हो हमीर जी जंगल से लौट रहे थे तब हालियों को - जो खेत जोतने जा रहे थे - सबसे पहले रस्ते में हमीर जी मिले . निःसंतान हमीर जी का सबसे पहले मुंह देखना - अपशकुन था - अतः वे बिना खेत जोते ही घर लौट गये और कहा कि 'साल भर की रोटी का प्रश्न है - यह निपूता सामने मिल गया - कौन जाने खेती कैसी होती .' समाज की इन व्यंग्योक्तियों से हमीर का हृदय अत्यन्त क्षुब्ध हुआ और वे आमरण तपस्या का संकल्प कर घर छोड़ जंगल चले गये . वहां उन्होंने शिव की उपासना की .
एक रात्रि हमीर जो स्वप्न में गुरु गोरखनाथ जी ने दर्शन दिये तथा आज्ञा दी कि कतरियासर में 'डाबला' नामक तालाब पर एक बालक पड़ा है - उसे तुम लाकर पुत्रवत पालो . इस प्रकार स्वप्न देख वे प्रातः होते ही घोड़े की जीन कसकर डाबले तालाब पर गये जहां एक सर्प और सिंह बैठे बालक की रक्षा कर रहे थे . हमीर जी के आते ही सर्प और सिंह अदृश्य हो गये . तब हमीर जी ने बालक की परिक्रमा की तथा शीश नवा क्र बालक को घर ले आये . इसी बालक का नाम 'जसवन्त' रखा गया . कालान्तर में जसवन्त को जसनाथ, यशोनाथ आदि नामों किया गया है .
जसनाथ जी का जन्म विक्रम संवत् 1539 कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी - शनिवार के दिन हुआ था .
Comments
Post a Comment