मैचंद जी का सिरलोका (अर्थाव ऑडियो सहित)

जीवन परिचय - सिद्ध मैचंद जी की जन्मभूमि घिंटाळ है. उन्होंने सिद्ध हांसोजी से दीक्षा ग्रहण की. मैचंद जी ने अपने गांव घिंटाळ में ही समाधि ली. घिंटाळ में जसनाथ जी की दो बाड़ियां हैं - जाणी और धाड़ीवाल सिद्धों की, मैचंद जी ने धाड़ीवालों की बाड़ी में समाधि ली जहां प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला दशमी को उनका समाधि दिवस मनाया जाता है. सिद्ध बनने से पहले ये देवी के उपासक (माताजी के भोपे) थे, देवी को बकरा चढ़ाना अपना धर्म समझते थे. लिखमादेसर में उनकी मुलाकात हांसोजी से हुई. हांसोजी ने उन्हें बलि देने से मना किया लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हुए. मैचंद जी ने हांसोजी जी की परीक्षा लेने के लिए उनसे स्वर्ग दिखाने की प्रार्थना की. हांसोजी ने मैचंद को अपनी आंखें मूंदने को कहा. मैचन्द ने अपनी आंखें मूंद ली तदन्तर उन्होंने हांसोजी के साथ स्वयं को स्वर्ग में पाया. स्वर्ग में मैचंद को प्यास लगी तो वे गंगा के समीप गए और बहती धारा के निर्मल जल को अपने चलू में भरना चाहा लेकिन पानी की जगह खून था, जिसे देख मैचंद का मन जुगुप्सा से भर उठा. उन्होंने ये घटना हांसोजी को बताई. हांसोजी ने मैचन्द को वहीँ उनकी इष्ट 'देवी' के मंदिर जाने को कहा. देवी ने दूर से ही मैचन्द को अपनी ओर आते देखकर, कहा 'तुम यहां कैसे आ गये ? तुमने, मेरा नाम लेकर निरपराध जीवों की हत्या की, उसके बदले तुम्हें निकृष्ट वस्तु के अलावा और क्या मिलेगा!' इससे मैचन्द जी की आंखें खुल गई और उन्होंने हांसोजी का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया.

मैचंद जी रचित सिरलोका (ऑडियो अर्थाव २० वें मिनट से)



मैचंद मैड़ी खड़हड़्या, खड़ हड़िया भुज डंड
दीन्यो लाधै हाथ रो, बीजा है पाखंड

मैचंद अलख सरेविया, विपरां दीजे दान
दीजे तन रा कापड़ा, का दूजन्ती धान

मूवां पछै कारज करै, सब जंवरै रा डंड
‘मैचंद’ कहै रे प्राणियां, सिंवरलै गोयंद

‘मैचंद’ मेळो मेळियो, जुग में मिनखा जूण
उण गुरु रे उपकार नै, भूल सकैलो कूण

हितकर सिंवरो श्याम, जीवां निसतारो हुवै
‘मैचंद’ सुधरै काम, काम क्रोध कैहर तजो

भाव भगति पुनदान, होम जाप जिग तेवड़ो
ऐ कारज सुभियान, शरणों मैचंद श्याम रो
सदा’क सिंवरो सांइयां, सदा समावै सुध
जग जीवण जसनाथ जप, मैचंद कर सुध बुध

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