निसाणी महंत जस्सूनाथजी सिद्ध री

सिंवरां देवी आद भवानी, द्यो सिद्धां निरमळी वाणी, सिद्ध तणी कैवां निसाणी
वेद मुसद्दी और हिजुरी, संबल कियो मिलाप
जोरो बोलै जुगत सूं, सुणो सिरदारां बात
सब सिद्धां ने पकड़स्यां, ऊगन्ते परभात
पौ पीळी वै बम्बलू आया, फिरग्या घोड़ा धूणी काया
पकड़ बांह अर मांय गुड़ाया, ऐ सिद्ध नहीं, सिद्धणी जाया
नौ आंमें पकड़ी छत्री की छाई, केएक भागा वन कै मांही
कायर कूकै मांये मांही, म्हांसू मार झलैली नाहीं
रिपिया देस्यां थारै तांई, म्हानै थे पकड़ोला नाहीं
रिपिया ठैर्या आठसै, कियो कनादो दूर
थे सेवग तो म्हां तणा, सुख भोगो भरपूर
अबै फौज बणी है भारी, जामें चढ़िया बन्दूक धारी
रात पड़ी जद घोड़ा खड़िया, पौ उगन्ते जायर पड़िया
पूनरासर में दियो घेरो, पकड़ महंतनै आगे करियो
म्हे हुकम राज रो ल्याया रे भाई, दूजी बात करो मत काई
महासूं रकम खड़ै नहीं पड़सी, सिद्ध बिना तो गरज न सरसी
जद सिद्धां ने जायर कहियो, म्हारो घर असवारां भरियो
म्हारी बाहर वेगी करियो, नातर घोड़ा चारो चरियो
जस्सूनाथ सिद्ध बोल जोर सूं, सुणो रे भाइयों बात
मरणै री चिंतै जको, हालो म्हारै साथ
तीन तिरसूलां उठ झरण झाल, आयो रै भाई सूरवां रो काळ
जदां सिद्ध पूनरासर नै चढिया, जसनाथ बाबै रो हुकम हुइया
राज री फौज ऊपर चढिया जाय, तो राजा डूंगरसिंह दोस्यारी हो जाय
रात वासै डालू टांडी री झूंपड़ी रहिया, पौ पीळी आया पूनरासर वास, अबै तो सायब थांरी आस
जस्सूनाथ सिद्ध रंग में भीना, कूवै ऊपर डेरा दीना
जद खबर गांव में पड़ी, सिद्धां राज सूं मांडी है अड़ी
बिना बुलाये आपे आवै, पकड़ल्यो सिद्ध जाबा नीं पावै
छुरी कटारी तेग समाही, सेंठा रैज्यो भाग मत जाज्यो भाई
चतरो सारण कीनो जोर, खाँच गळै निसरगी फोड़
लूणासर को सारण देवो, खट दरसण रो राख्यो टेवो
सती पर में जोड़्या हाथ, देव लोक सूं घाली बांथ, जांरी बाजी राखै नाथ
बाघो जाणी कूद’र पड़ियो, कर ललकार बेंखळो पड़ियो
हुकमें कूकणै कीनी राती आँख, खाँच गळै पर लीनी नाख
डालू टांडी मौत पर मांडी
रंग दियो कूवो हुयग्या पार, लाल सुरंग्या है त्यार
साळ मांयला सुणियो हाको, अरे भाई कूवै पर हुयग्यो है साको
भोमैं कयो सुणो रे भाई, अबकलै बारी आपणी आई
हाक मार हणुंतो उठियो, सिर सारो छुरियां सूं कटियो
छतरी धरम आपणो नाहीं, रगत खिंडिये पर रोटी खाई
आ तो बात बणी नहीं आछी, अबै फौज घिरै है पाछी
अबै फौज राजेरां आई, बठै बुरी विचारियो भाई
जोरै कोठारी करै उबार, चढ़ायो जुंवारो पड़िहार
जस्सूनाथ सिद्ध पर तेग ज तोली, दूदै सिद्ध रे लागी गोळी
देवसी महीयै पेट ज फाड़्यो, सेऊ रुघाणी डांग बजाई
जस्सूनाथ सिद्ध घाती है पेट, बुवा रगत’र लागी है फेट
घाव घावड़ियां टांका ज दीना, घाल डोली सिद्धां ने साथै लीना
मिंगसर बदी दस्यूं दिन चढ़ियो है खासो, गाँव पूनरासर में हुयो है रासो
संवत उगणीसै की सई, इकतीसै री साल
एक मास बीकाणै रहिया, फिर पाछा बठै बम्बलू आया
फाड़ लंगोट किना वास, सगळो भेष ज भेळो हुयो
हुकमसिंह फौजदार मुसद्दी सामै आया, राजा डूंगरसिंहजी पेटिया दिराया
सब रळकै चालो परदेश, सिद्ध हुवै तो सागो कीज्यो, जाट हुवै तो रकम दीज्यो
मरु धरा में फेरी फिरिया, कर आदेश’र पाछा घिरिया
झंझेऊ में कियो वास, इतना पहली एक ही इकळास
खाधी खरची हुया खवार, इण सिद्ध सूं लागैनी उंवार
दोनां रळकै कुबध उपाई, आपां बाछ भरांला भाई
आपां राज सूं मीठी करसां, मिल्यां मुसद्दी रिपिया भरस्यां
भेख उपरां तेग समाही, मनमें दया रती नहीं आई
फिर फिर खोदी ऊंडी खाई, चौरासी नै दीनी साही
जद सिद्ध आबूनै चड़ियो, भेख रे कारण सायब सूं अड़ियो
बड़ै साहब परवाणो कीनो, पटन सायब नै आयर दीनो
हाथ जोड़ कीना आदेश, तम मालक बड़ा दरवेश
राज काज री मोटी माया, कई दिन तो बातां में बोळाया
चौड़े बैठा करे इकळास, नाथ निरंजण वां री पूरै आस
खट दरसण री राखी बाजी, जसूनाथ निरंजण राजी
चतर जालू टीकूं भारी साथ, धोरै धोरै कीनी बात
जसूनाथ सुरगापत वास, कही निसाणी गोरधनदास
गांव बम्बलू उत्तराधा वास, कही निसाणी गोरधनदास

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