अग्नि नृत्य का एक दृश्य |
गुरु जसनाथ जी महाराज के अग्नि नृत्य की तस्वीर धुंधली सी नज़र आने लगी। मन में अनुत्तरित तीखे सवालों का सैलाब सा उमड़ा। क्या यही तथाकथित आधुनिकता है? क्या कोई दुस्साहसी न्यूज़ चैनल बिना तथ्यों के लाखों भक्तों की आस्था के साथ खेल सकता है? क्या यह किसी बड़ी साजिश का हिस्सा तो नहीं है? इस दैवीय शक्ति की गरिमा व गौरव पर लगे इस तथाकथित लांछन कि त्वरित प्रतिक्रिया या कार्रवाई कैसे की जाए? क्या हमारे पास पर्याप्त संख्या बल या संसाधन उपलब्ध है?
इन्हीं अनगिनत सवालों में उलझा दुखी व हताश मन उस समय में जा पहुंचा, जब एक एक अकेली दैवीय शक्ति गुरु जसनाथ जी ने तात्कालिक मुस्लिम आक्रांताओं के अत्याचारों से दुखी समाज को मुक्त करवा कर एक नई संस्कृति और परंपरा की शुरुआत 36 नियमों का प्रतिपादन के साथ की थी। इस कठिन व संघर्षशील समाजसेवी परम्परा में रुस्तमजी दिल्ली सल्तनत द्वारा इसी तरह के ढोंगी पाखंडी शब्द रूपी लांछन मिटाने के लिए दिल्ली दरबार में अपनी जान की परवाह किए बगैर विशाल अग्नि कुंड में कूद गए थे व इन्हीं ढोंगी पाखंडी शब्दों का जोरदार प्रत्युत्तर देकर दिल्ली सल्तनत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। इसी त्याग कि परंपरा का निर्वहन जसुनाथजी जैसे संतों ने किसान आंदोलन के रूप में अत्याचारों के विरुद्ध आवाज बुलंद की थी। क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि उस समय सिद्धों की सामाजिक स्थिति कैसी थी? कितनी राजनैतिक पकड़ थी? विरोधी ताकतों की क्षमता कितनी रही होगी? परंतु अपने धर्म के गौरव की रक्षा के लिए अपने मुट्ठी भर संसाधनों के बावजूद अपनी विराट व अदम्य साहस के बल पर तात्कालिक सल्तनत को हिला दिया था व मुगल बादशाह तक झुकने को मजबूर हो गए थे। परंतु आज की स्थिति बिलकुल विपरीत है, सामने है केवल धर्म को पाखण्ड बताने वाला एक चैनल व पत्रकार, जिनके सामने है अपमानित, आक्रोशित जोशीले लाखों जसनाथी भक्त जन। अगर फिर भी हम इस तरह के बिकाऊ मीडिया वालों के आगे घुटने टेक देंगे तो आने वाली पीढियां कभी माफ नहीं करेगी।
एक दैवीय शक्ति जिसने हमें जीने का तरीका सिखाया, हमें सांस्कृतिक गौरव के वो पल दिए जिनका बखान हम अक्सर करते रहते हैं, उनके 36 नियम जिन्हें हम अक्सर उच्चारित कर गौरवान्वित महसूस होते हैं, वह दिव्य शक्ति जिनके दर्शन करने मुस्लिम बादशाह तक दौड़े चले आते थे, आज उनकी सत्ता व संस्कृति को एक बिकाऊ न्यूज़ चैनल ढोंग व पाखंड बता रहा है। अगर हम इस दैवीय शक्ति पर उठे ढोंग पाखंड रूपी अपमान का बदला नहीं ले सकते तो उतार फेंकिए यह दिखावटी मुखौटा व दिखावटी शान।
अगर हमारे ही समकक्ष राजपूत भाई अपनी मां पद्मावती के अपमान को लेकर संपूर्ण भारत में सभी धर्म विरोधी ताकतों से लड़ सकते हैं, महीने भर धार्मिक कर्फ्यू लगा सकते हैं, सरकारों से टकरा सकते हैं तो क्या हम केवल एक बिकाऊ न्यूज़ चैनल का सामना नहीं कर सकते? अगर हाँ, तो उठो कमर कसो व इस बिकाऊ न्यूज़ चैनल की हरकत रुपी गाल पर ऐसा तमाचा मारें कि दुबारा धर्म पर कुदृष्टि डालने की सोचने भर से रूह कांप जाए। अगर यह नहीं कर सकते तो अपने आप का सिद्ध पुरुष रूपी महिमामंडन बंद करें व भावी पीढ़ी की सांस्कृतिक बदनामी का नंगा नाच यूं ही बेबसी के साथ देखते रहें।
लेखक विजय सिद्ध कतरियासर |
अनुकरणीय आलेख...
ReplyDeleteबहुत ही सराहनीय एवम् शानदार लेखन शैली, आपके विचारो ने समाज और धर्म की आधुनिकता को दिखा कर अंदर से झकझोर दिया।
ReplyDeleteबहोत ही शानदार
ReplyDeleteBahut hi adbhut
ReplyDeleteसत्य वचन हे
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