जीव समझोतरी 31-60

हरख जपो हरद्वार, सुरत री सैंसर धारा
मांय है मन महेस, अलील रा अनंत फुहारा ।।31।।
लालू कृत किल्होड़ी लेय, अगन तूं अवल तपावो
पात्र पौंन परूस, जोग सूं जी' झिकळावो ।।32।।
'लालू' खासा करो खुराक, माल कू डिगै न मिमता
वसतर वरण विवेक, भे'खल्यो गुरु री गमता ।।33।।
टोपी धरम दया, शील रा सुरंगा चौळा
जत रा जोग लंगोट, भजन रा भसमी गोळा ।।34।।
खमां खड़ाऊ राख, रहत रा डंड कंमंडळ
रहणी रस्तै हाल, लोपज्या ओखा मंडळ ।।35।।
खेलो नौखंड मांय, ध्यान री तापो धूणी
सोखो सरव सुवाद, जोग री सिला अलूणी ।।36।।
पेड अकास जमीं दिस डाळा, आभ दिसांई ऊगै
हस्यो हुवै नित हालै डोले, खंडत हुवै दिन पूगै ।।37।।
ओपत आथ्य करै गुर ईसर, जोत रूपी जुग मडै
जामै न मरै हुवै नी बूढो, निराकार नां खडै ।।38।।
बांटो बिसवंत भाग, देव थांनै दसवंत छोडी
अवस जीव जा हार, टेकसी निस्चै गोडी ।।39।।
पीछे सूं जम घेरसी, टिकसी काळ किराई
कुण आरोगै घीव, जीमसी कूण रसोई ।।40।।
सांई बडो सिलावटो, जिण आ काया कोरी
खूब रखाया कांगरा, नीकै नो मोरी ।।41।।
पीछे रा दिन सूल हा, जां मैं वरती गूंग
काया रूंधी कूगरा, रोगी राखै रूंग ।।42।।
मन पकड़े नहीं मौन रा, करै ऊठ बकवाद
रुळघेटा सूं रुह घणौ, इन्द्री गई सुवाद ।।43।।
'लालू' ममता गई सुवाद, पांथ चरै पंच डंगर
दाता ओ दुख मेट, मन मेटो मळ संगर ।।44।।
दुरजोधन भिंव सारसा, ऊठ गया दुसासण
रिख मोनी धर ऊपरै, छोड़ चल्या निज आसण ।।45।।
बडा बडां सूं ना सझ्यो, ओ मस्तानो मन
रिख मोनी सा पच गया, कथग्या राम किसन्न ।।46।।
'लालू' लेखो मांग सी, समझ जीव बेकल्ल
राणै रावण सारसा, करग्या बूंटी झल्ल ।।47।।
अलख अलाका मांगसी, बूझै भली बुरी
थरहर कांपै जीतबो, जैवरै हाथ छुरी ।।48।।
'लालू' सूतां क्यूं सरै, बायर ऊभो काळ
जोखो अवस्यै जीवन, जैवरो घालै जाळ ।।49।।
ऊमर तो बोळी गई, आगै ओछी आव
बेड़ी समंदर बीच में, क्यूंकर लंघसी न्याव ।।50।।
भरम भीत भारी चिणी, घट कूड़ा किला
नीचे दीनी नींव में, सांस की सिला ।।51।।
मोह चकमों च दिस तण्यो, पौंचै नहीं पुडंग
कोरै कपडै पास बिन, किस विध लागै रंग ।।52।।
काहला कालू नां मरै, ना ढीलां बैठां
नीसरणी निज नांवरी, घट भीतर पैठां ।।53।।
धीरज सूं दिल धोय, अवल कर अंतर मांजी
हर सूं ब्हांच बिछाय, भाव कर बोलो हांजी ।।54।।
'लालू' रस्तै हालिये, डांडी छोड डग
 कुळ गांवां मैं क्यूं पचौ, हालो नेक नगर ।।55।।
'लालू' ओ जी' अंधळो, आगै अळसीड़ा
झरपट बावै सरपणी, पिंड भुगतै पीड़ा ।।56।।
मेल्या हा कुछ काम कू, ह्यांमल बैठा घर
पीछे क्यूंकर जाइये, छूटै नी आ हर ।।57।।
समदरसी सीतळ सदा, जाकै परचै पौन
ब्रह्म विचारै सो बडा, ओर देह में कून ।।58।।
क्रिसन समयै कां'न हा, कां'न समै गोपी
गोपी गोपी कां'न हा, सैंसर आप अड़ोपी ।।59।।
निरगुण सेई निसतिर्या, सुरगुण से सीधा
कोड़ां कोरा रह गया, विरला सा बीधा ।।60।।

Comments