जीव समझोतरी 61-90

जे जी चावै मुक्ति कू, कुंजी सतगुरु बूझ
कर थिर खांडा सबद रा, कर सूरापण जूझ ।।61।।
सतगुरु साहूकार है, माणक मोदीपै
पूंजी सौंपै पूरसल, जद जमघट सूं जीपै ।।62।।
न्यात गात पिरथी करै, हर रै कैसा वंश
बुगला देख न पांतरो, मान सरोवर हंस ।।63।।
'लालू' धीरज दिल दरियाव, प्रेम तूं पाळ पछिंठो
अमी पिवो इकधार, सुरत सूं सरवर दीठो ।।64।।
बडा बडां में नीसरी, ताती तंवरी बाळ
सिखर पहुंता सूरवां, खोल खिड़क बंकनाळ ।।65।।
राव भरथरी निसतिर्या, तिरग्या गोपीचंद
गोरख जोगी गम दीवि, कट्या काळ रा फंद ।।66।।
जत रहणी गुरु ज्ञान सूं, चौथै चलै विचार
संता सत कर मानिये, जोगी रा जप च्यार ।।67।।
जप जोगी जसनाथनै, स्वामी बड़ दरियाव
राजी हुवै तो रिण कटै, नाथ निछोड़े न्याव ।।68।।
साध गऊ है नाथ रा, सब सायब री सांप
थावर थिरकै नौग्रह, जम जैवरा कांप ।।69।।
लेखै सिरज्यो थां लियो, सायब रो खिलको
सायब राजी सील तूं, झूठा काय बको ।।70।।
'लालू' लापर आदमी, झूठी कहै उपाय'र
नीचा नाखो नारगी, सिर दोजख रा भार ।।71।।
'लालू' लाखां मानवी, के कोड़ा माणस
नांव बिना सब नारगी, जैवरो छेदै वंस ।।72।।
पिरथी पूजै देवता, सूना क्षेतरपाळ
सावण री नदियां निठै, ज्यूं खादर खोळा खाळ ।।73।।
ब्रह्म सकल में एक है, चर अचर में जोत
करमा सेती ईरखा, दुबध्या सेती छोत ।।74।।
पिरथी भूली पीव कू, पझ्यो समंद में खोज
मेरै हांसे मैं हंसू, दुनियां जाणै रोज ।।75।।
'लालू' बिरच्या मोमिया, बैठा काया मल्ल
जीव विचारो पांगळो, क्यूंकर हुयसी सल्ल ।।76।।
दुख दाहो वनखंड दह, फूल्योड़ी वणराय
पीछै कारी ना लगै, पैलां थकी बुझाय ।।77।।
'लालू' परसो परमहंस, तरवेणी रै घाट
ब्रह्म खोज्यां दरसै सदा, ब्रह्म रूप विराट ।।78।।
आकासे उरध मुख कूवा, इमरत सुभर भरिया
कर बिन नार सदा जळ सींचे, रूप विहूणी तिरिया ।।79।।
नव दरवाजा नारगी, दसवें ब्रह्म उज्ज्वल
के विध जाणै बावळा, कोड़ा मंझां कल ।।80।।
नव दरवाजा नरक रा, निसदिन बह निसंक
दसवै री खिड़की खुलै, बूंदीजै दरबंक ।।81।।
'लालू' बिंद सेती पिंड उपनौ, पीछे पौंन पुरस
सरवण नेतर नासका, जिभ्या इंद्री रस ।।82।।
जां पीछे मोह उपनौ, सांसो अर इमरस
जीव विचारो के करै, पझ्यो विडाणे वस ।।83।।
भली बुरी दोनूं तजो, माया जाणो खाक
आदर जांकू दीजसी, दरगा खुलसी ताक ।।84।।
ल्यो लेखण मांडो सदा, नांव री निरगुण स्याही
किरतब कागद राख, अरथ रा आंक सदाही ।।85।।
बांध नगारा नांव रा, ले जरणा रा झंडा
फकत फकीरी फौज ले, रोको जम डंडा ।।86।।
कतल करो जमदूतनै, मांड मोरचा नांव
खालकने खिरणी भरो, दे जंवरै नै जाब ।।87।।
त्याग तबल बाजै सदा, इक डंकै सूं आभ
करो पलाणी प्रेम री, (हुय) सांवत चढो सताव ।।88।।
अणियां में आधा धसो, कर घोड़ा गरकाब
पट्टा बगसै परमगुरु, जूझ मूवां लख लाभ ।।89।।
उपर इंदर घरहस्यो, पावस बूठा प्रेम
भीगी पांचूं आतमा, हियो हुवो ज हेम ।।90।।

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