जीव समझोतरी 91-122

अवल गरीबी अंग वसै, सीतळ सदा सुभाव
पावस बूठा प्रेम रा, जळ सूं सींचो जाव ।।91।।
गैला राखै गीरबो, काया काचो ढल
बायर सेती ऊजळी, अंदर भरिया मल ।।92।।
पिरथी क्यूं विसराइये, आपां मांय कसर
पीछै पैला क्यूं टळे, पैलां बावै सर ।।93।।
दूजां क्यूं विसराइये, आप मांय ओगुण
खजै कसूतै धान ज्यूं, निसचै लागै घुण ।।94।।
सांसै सूं न्यारा रहो, न लागै घुण माखी
साची कहसी चंदरमा, सूरज है साखी ।।95।।
सीस सुंवास्यां के हुवै, हियै कांगसी बाय
जां घर सूं जी' विछड्यो, तां घर सुरत मिलाय ।।96।।
पासै हुय भज पीव कू, छोड़ कुटंब री लाज
कुळ लज्या सूं डूबसी, देख कहों हूँ आज ।।97।।
लागू तो बोळा जणा, घर घर मां दोखी
गुज किणी सूं कीजिये, कुण थांरा सोखी ।।98।।
ह्यां तो अपणा को' नहीं, पैला रहै परसंगी
पिछम धरानै हालिये, कीजै अपसंगी ।।99।।
काया काची झूपड़ी, कोरो सो' कुळझो
कुबध जूण रा बंध लिया, पापां क्यूं उळझो ।।100।।

परखै ।।१०।।
साह सरनाथ, कूण घर

जोबन हा जद जतन हा, काया पड़ी बुढाण
सूकी लकड़ी ना लुळे, किसविध निकसै काण ।।101।।
चित राखो चरणारबिंद, सीतल रह नेड़ा
खूनी खोरे दीजसी, गाफल सो गधेड़ा ।।102।।
साध सुणावै सकलन, ज्ञान तणो प्रसंग
चित चंचळ मन उठ चलै, उड्यो करै उलबंग ।।103।।
लाय लगी घर आपणै, घट भीतर होळी
सील समंदर न्हाइये, जां हंसा (री) टोळी ।।104।।
दोस हुवै इण जीवन, कीजै पांचोलो
परभु पड़दो दूर कर, अंतर पट खोलो ।।105।।
नारायण री नजर में, नाथजी सारां निरखै
कंचन काच कथीर, पारख हीरा परखै ।।106।।
घटघट कहिये नाथ, कूण घट कहिये खाली
साह सूरवां चोर, बाळक बुध बुंगाली ।।107।।
आसै पासै आतळो, पड़ो (हो) रिड़बड़ता
स्वामी मोरी भरमना, भान करो घरबड़ता ।।108।।
जोग झरोखै बैसिये, मेरी सुणो फरियाद
न्याव निजर में काढिये, जो जी' पावै दाद ।।109।।
स्वामी हम सिध साधक तमगुरु, बात कहूं ईकहुं
क्यूंकर (हो) म्हारो आवणो, बिच में लागी युं ।।110।।
'लालू' तूं मत जाणी मैं बडा, मन मुवा मुड़दा
अध डकै सूं गेरदयै, खोस करै खुड़दा ।।111।।
करमां सूं काळा भया, दीसो युं दाध्या
सिंवरण रा सामा करो, जद पड़सी बाध्या।।112।।
ओ जी' मोटै पाइये, ब्रह्म तणी ओलाद
गेला में खरची खुसी, जिण सूं पड़गी आध ।।113।।
चोटी कटिया ब्रह्म रा, सायब रा नाती
वसां विड़ाणे देस में, झूम रया जगाती ।।114।।
अलखपुरी अळगी रही, ओखी घाटी बीच
आगै क्यूंकर जाइये, पग पग मांगै रीच ।।115।।
बण्या जगाती चूंतरा, बोळी मन मंडी
चित चोहट डाणी खड्या, बोली रिच मंढी ।।116।।
केवळ कळी भंवरो गयो, ली फूलां री वास
अंतर अणमैं ऊपड़ी, राखो बिरम हुलास ।।117।।
लिखलिख मेली हुंडियां, नित खालंग खरची
गाफल भया गुमास्ता, जां सूं पड़गी कची ।।118।।
केवळ कचेड़ी परमहंस, जां की है अणभै
सबद सुरत सूं लिख दिया, जी' बांचै सुणभै ।।119।।
निपनी सूल सराहिये, जद होसी पंचमणो
सीधा हुयस्यो सरव सूं, जद कटसी सिर लैणो ।।120।।
करज पराया काटिये, मत राखो लैणू
साहूकारो राखिये, अंत आगै देणू ।।121।।
जीव समझोतरी ज्ञान है, सबद साची सैनाणी
ब्रह्मज्ञान सो घीव, और सब नीका पाणी ।।122॥

Comments