उडो म्हारी कुंजां पांख सुंवारो, मना न मेलो संका ।।1।।
अजोध्या नगरी राजा राम वसै, सीत वसै गढ़ लंका ।।2।।
हर हट लागो इंद गडूक्यो, मोरां सरस झिलारो ।।3।।
वरसाळे रा पवन झबूका, जद डरपै जी' म्हारो ।।4।।
वरण वरण रा बण्या बादळा, धरहर घटा घमकी ।।5।।
रैण अंधारी पावस वरसै, बैरण बीजळ चमकी ।।6।।
फुलवाड़ी में रैऊ एकेली, नैणा नींद न आवै ।।7।।
राम मिल्यां आराम मिलेसी, जिवड़ो जद सुख पावै ।।8।।
मिनख हुवां तो मुख सूं बोला, म्हे वनखंड री कुंजां ।।9।।
कंकर म्हे संदेसो कैस्यां, के जद म्हारी भुंचा ।।10।।
राम लिछमणनै देवां संदेसो, लिख मेलो म्हारी पांख्यां ।।11।।
राम र लिछमण पढनै लेसी, जद देखेंला आँख्यां ।।12।।
ओ गुण कुंजां कदे न भूलां, दुख में कारज साज्यो ।।13।।
आडा परवत अणंत घणां हैं, रूंखां विलम न रै'ज्यो ।।14।।
राम लिछमणनै देवो संदेसो, भली भांतकर बै'ज्यो ।।15।।
पोह सूंजाय पहुंती कुंजां, खेम कुसळ बतळावै ।।16।।
सीताजी रा लिखिया संदेसा, लाखणनै समझावै ।।17।।
पांख्यां लेख लिखै नर लाखण, थे लंका गढ जाज्यो ।।18।।
सुख संपत री बातां कै'यो, गुण गोमंद रा गाज्यो ।।19।।
कूंजां मैं थाने ज्यूं कैयो, जाय राम ने कैयो ।।20।।
सीता देख दिसो बाँच्यो, राज रावण री जासी ।।21।।
पदम अठारे सिन्या वानरा, राम अजोध्या रो आसी ।।22।।
लंका सूं तो रावण जासी, राम जीत कर आसी ।।23।।
'पांचो' भणे परम गुरु स्वामी, हरिजन हरने गासी ॥२4॥
कुंजड़ल्या म्हारो एक संदेसो, राजाराम लिछमण हरनै दीजो ॥टेर॥
अजोध्या नगरी राजा राम वसै, सीत वसै गढ़ लंका ।।2।।
हर हट लागो इंद गडूक्यो, मोरां सरस झिलारो ।।3।।
वरसाळे रा पवन झबूका, जद डरपै जी' म्हारो ।।4।।
वरण वरण रा बण्या बादळा, धरहर घटा घमकी ।।5।।
रैण अंधारी पावस वरसै, बैरण बीजळ चमकी ।।6।।
फुलवाड़ी में रैऊ एकेली, नैणा नींद न आवै ।।7।।
राम मिल्यां आराम मिलेसी, जिवड़ो जद सुख पावै ।।8।।
मिनख हुवां तो मुख सूं बोला, म्हे वनखंड री कुंजां ।।9।।
कंकर म्हे संदेसो कैस्यां, के जद म्हारी भुंचा ।।10।।
राम लिछमणनै देवां संदेसो, लिख मेलो म्हारी पांख्यां ।।11।।
राम र लिछमण पढनै लेसी, जद देखेंला आँख्यां ।।12।।
ओ गुण कुंजां कदे न भूलां, दुख में कारज साज्यो ।।13।।
आडा परवत अणंत घणां हैं, रूंखां विलम न रै'ज्यो ।।14।।
राम लिछमणनै देवो संदेसो, भली भांतकर बै'ज्यो ।।15।।
पोह सूंजाय पहुंती कुंजां, खेम कुसळ बतळावै ।।16।।
सीताजी रा लिखिया संदेसा, लाखणनै समझावै ।।17।।
पांख्यां लेख लिखै नर लाखण, थे लंका गढ जाज्यो ।।18।।
सुख संपत री बातां कै'यो, गुण गोमंद रा गाज्यो ।।19।।
कूंजां मैं थाने ज्यूं कैयो, जाय राम ने कैयो ।।20।।
सीता देख दिसो बाँच्यो, राज रावण री जासी ।।21।।
पदम अठारे सिन्या वानरा, राम अजोध्या रो आसी ।।22।।
लंका सूं तो रावण जासी, राम जीत कर आसी ।।23।।
'पांचो' भणे परम गुरु स्वामी, हरिजन हरने गासी ॥२4॥
कुंजड़ल्या म्हारो एक संदेसो, राजाराम लिछमण हरनै दीजो ॥टेर॥
आदेश।। मुझे इस सबद की रामकरण नाथ जी वाली सीडी या अन्य किसी माध्यम में मिल जाएगी कही?
ReplyDeleteआदेश।। यह रामकरण नाथ जी द्वारा गाया हुआ ऑडियो फॉर्मेट में मिल सकता है कही जी?
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