सिद्ध रुस्तम जी (सबद)

छतरी वंश में रुस्तम चेत्या,
रुस्तम कळा सुवाया।।१।।
घर चौहाणा वासो लियो,
जिण पतस्या परचाया ।।२।।
पिता सांवळजी माता सेवका,
जिण रै ओदर आया ।।३।।
नौ मास ओदर में रहिया,
दसवें बाहर आया ।।४।।
दादीजी तो थाळ बजाया,
भूवा मंगळ गाया।।५।।
घर रै जोशी पुस्तंग बांची,
रुस्तम नांव दिराया ।।६।।
जलम भोम तो गढ मुलतानी,
पिता देश दीवाणा ।।७।। 
पापी दुसमण दगो कमायो,
दीवी चौरासी नै सायां ।।८।।
साह कोप्या कह शादी लेल्यो,
नी (तो) फांसी हुकम दिराया ।।६।। 
शादी लियां वंश म्हारो लाजै,
धरम हिन्दू रो खोवां ।।१०।।
मुसलमाणी पंथ बधावां,
काळ किता दिन जीवां ।।११।।
छत्री उठ्यो रीस कर मन सं,
खड़ग हाथ में लीया।।१२।।
मुसला पाँच कचेड़ी मास्या,
पतसा पण थरराया ।।१३।।
सांवळ हाथां तन वरतायो,
सुरग लोकनै ध्याया।।१४।।
सुरग लोक में बाजा बाज्या,
मीठा मंगळ गाया ।।१५।। 
धरम दीन रा रैया ज सैंठा,
गुरु रा विड़द बधाया ।।१६।। 
'रुस्तम' फक्कड़ भणे मुलतानी,
जुग जुग कां'न सुवाया ।।१७।।

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