इण धर राजा इंद भणीजै

इण धर राजा इंद भणीजै, सो म्हाराज कुहाणूं [1]
राजा राव नै आगळ हुवा, जां कोई गरव न आणूं [2]
इण धर पर छै चकवै हुवा, जां कोई गरव न आणूं [3]
गरव कियो उण चकवै चकवी, रैण विछोड़ो पाणूं [4]
गरव कियो रतनागर सागर, नीर खारो कर डास्यो [5]
गरव कियो बागांरी कोयल, रंग करंग कर डास्यो [6]
गरव कस्यो उण वन री चिरमी, मुख काळो कर डार्यो [7]
गरव कियो लंकापत रावण, तोड्यो सबळ ठिकाणूं [8]
मंदोदर रै कैये न मान्यो, जंभि राज गमाणूं [9]
वन में जाय सताया तपसी, काया अंश ज ताणूं [10]
सतजुग में पैळादो सीधो, जां सिव संकर जाणूं [11]
तेता जुग में राव हरीचंद, जां सत सील भखाणूं [12]
जोग दुवा पर पांचूं पांडू, जां भगवान पिछाणूं [13]
भगवों बानो हितकर मानो, जुग जुग जसवंत जाणूं [14]
भगवें सू चोळ करी दुरजोधन, जातां नांव न जाणूं [15]
गरव करै ना गेला घड़सी, ओ थारो राज न जाणूं [16]
राज दियो म्हे लूणकरण नै, गुरु गोरख परवाणूं [17]
उनथ नाथां अनवी निवावां, करां जिको मन भाणू [18]
तीन लोक रा नाथ भणीजां, थळसर रचियो थाणूं [19]
काळंग मारां कुळ वरतावां, निकळंक नांव कुहाणूं [20]
गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ (जी) असली वेद बखाणूं [21]

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