जसनाथजी रचित 'कोड़' - 1

ओं तंते मंते जोत जगाई, वाके वचने काया उपाई [1]
मीठो थां सागर सोस्यो, खारो कियो थांही (छाई) [2]
ईसरदेव हुआ निरकारा, इसी परापती पाई [3]
[ईसरदेव हुयो निरवाळो, इसी फलापती पाई]
पैलै दीपक चंदो सिरज्यो, सिरजी सिस्ट सुवाई
[सरजी जोत सुवाई][4]
दूजै दीपक सूरज सिरज्यो, सूरज जोत सवाई
[गोरख जाग जगाई][5]
अंगां हूंतां ईसर गौरां सिरज्या, गोरख कळा जगाई
[उमत देव (जेह) उपाई][6]
एकै हाथ न ताळी बाजै, रळ दोय काया उपाई [पकाई][7]
धिन है ज्ञानी ज्ञान बे साझा, काची काया उपाई [पकाई][8]
ईसर दैत'र देवता सिरज्या, तां कीवि उपवाई [9]
दैतां टोटो देवां लाहो, कहि न मानी काई [10]
मछ कै रूप संखासर छेदयो, सागर कियो छाई [11]
मदरूपी मध कीचक छेद्यो, कंटक खाधो काई [12]
कछ के रूप हुय झबरख मास्यो, वो गयो बिण आई [13]
वारा रूप कळंदर गा'यो, सतजुग वार कुहाई [14]
कोड़े पन्द्रा टोटै दीनी, पांचां धर पौंचाई [15]
पांचां (रो) मांझी है पहळादो, पहळादैनै मान बडाई [16]
थे उण राजा री करणी हालो, जो मत पार लंघो मोरा भाई [17]
सो गुरु सदा सिंवर ओ प्राणी, (जिण) थारी उमत आव उपाई [18]
उमत घटती वाचा बधती, जै गुरु गोरख जाग जगाई [19]
गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ(जी) बांच सुणाई [२०]

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