जिण गुरुनै सिंवर ओ प्राणी

जिण गुरुनै सिंवर ओ प्राणी, जिण आ सिस्ट उपाई।

ओंकारे आप उपन्ना, जळ सूं जोत सुवाई। 

मार पलाथी तपस्या बैठा, जुगां छतीसां तांई। 

कायम राजा फुरी मनोरी, कळ री मांड रचाई। 

पैलां पौन पाणी परकास्या, चांद सूरज दोय भाई। 

ब्रह्मा विष्णु महेसर सिरज्या, आद भवानी माई।

इतरा तो गुरु पै’लां सिरज्या, पछै परज उपाई। 

लख चौरासी जूण उपाई, दुनियां धंधै लाई। 

नौ ओतार किया नारायण, ओं पड़दै पौन रमाई 

(परथम पौन रमाई)। 

मारै तारै दैत सिंघारै, स्वामी बडो'स राई। 

सात समंद रो कियो मथाणो, सैंस कळा वरताई। 

गढ़ लंका हुंती रावण रै, समंद सरीखी खाई। 

कोप्या कायम फोरी मनोरी, मार खळो कर गा’ही। 

जूना जोगी थळसर जागै, काटै पीड़ पराई। 

कळ बीते काळंगनै मारै, करसी जूझ लड़ाई। 

चौसठ जोगण आगै जूझै, गैबी चक्र चलाई। 

लेय विसंनर होम करेसी, फिरसी आण दुहाई 

परजूणी नारायण काटै, कांन तणी सरणाई। 

कोड़ तेतीसां मेळो हुयसी, कांन तणी संकळाई। 

गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ (जी)

आगम बांच सुणाई। 

मनस्या मै’ल मांयकर मूरत, आद भवानी माई 

ईडै में राखी प्रिथमी, ईंडो फोड़ रचाई 

ओतार गुरु थळसर आयो, करियो सेव सदाई 

नारायण निकळंकनै सिंवरो, खलकन तणी सरणाई

Comments

  1. Replies
    1. चैत, आसोज में बड़े और माघ में थोड़ा छोटा मेला भरता है. शुक्ल पक्ष की तीज-चौथ सती दादी का और छठ सातम को जसनाथजी का मेला भरता है. अमावस के बाद की घटत-बढ़त की गिनती नहीं करते.

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