पिंड घड़े घड़ गोवळ मेल्यो, गोवळियो दिन च्यारे।
जारै जिवड़ा खरचण खाटण, सुख संपत वोपारे।
जीव धणी सूं कोल कियो है, सुण पुरखा सुण नारे।
ओ गोवळ दरबार धणी रो, मत हाली अहंकारे।
सांच सांच धन धरती गाड्यो, सांच करी भूं भारे।
सांच्यो धन धरती में रै'सी, का कोई कटक खंधारे।
नागां ज्यू फण कीयां हाँडै, दुनियां संचैगारे।
ऊंचा नीचा लभकण हाडै, ज्यू डाकण ज्यू स्यारे
नार देवै जद पुरखो वरजै, पुरख देवै जद नारे।
हवंता थकां लांघण काढ्या, भरिया रैया भंडारे।
दरगां सूं जम भेज्या नारायण, लावो बांध जिनारे।
भली हुई जमदूता लाया, लेखो देय पियारे।
नांव धणी खरच्यो वरच्यो, दीनो लेव चितारे।
नांव धणी है कौडी न खरची, हवंती वस्त पियारे।
जिवड़ो लेय जमांनै सौंप्यो, हुय लाग्यो हुंसियारे।
ऊना ठाडा धीजा धोया, कसणी सै'वै करारे।
जम रै हाथ छुरो है पैनो, तीखो है समसारे।
ऊंधा टेरै मार दिरावै, छांटै लूण फुंवारे।
बैठे जिवड़ो थरहर कांप्यो, उबरूं किसे उधारे।
का उबरैं कोई सुकरत कीयां, का करणी इधकारे।
करणी किरत कमायो नाहीं, के छूटै हितियारे।
आठूं पोर विरळावत रहियो, ना जपियो निरकारे।
से नर जाणो अलख सरेयो, आभड़ कजियो सारे।
लाड हुवै सायब री दरगा, जां खरची वस्त पियारे।
एकण हर रै नांव बिना, आवट कजियो सारे।
गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ(जी) असली ज्ञान विचारै।
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